Monday, April 9, 2007

फरू की ग़ज़ल

(दिलबर मेरा दूर हुआ मेरे दिल का चेन वो लूट गयावोह गम का साया छोड़ गया इस गम के सिवा अब कुछ ना रहा) -
ही थे आसू भी अब बह गए धड़कन कहे रूक जौ मैं बस अब यहिधाद्कन कहे रूक जौ मैं बस अब यही - २
(मेरा साया मुझसे रूठ गया एक सपना था वो टूट गयाजो अपना था वोह छोट गया ऐसी क्यों मिली है सजा) - २आसु ही थे आसू भी अब बह गए धड़कन कहे रूक जौ मैं बस अब यहिवो लम्हे बिखरे दूर कही मायूसी है इस दिल में बसिबस तनहा हूँ कोई आस नही एक दर्द भरा आलम है यहामैं जिन्दा हूँ पर होश नही जब दिलबर मेरा साथ नहिबस चाहत है कोई जोश नही मदहोश हूँ अब क़यामत सही(दिलबर मेरा दूर हुआ मेरे दिल का चेन वो लूट गयावोह गम का साया छोड़ गया इस गम के सिवा अब कुछ ना रह) - २

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